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हमेशा की तरह उस शनिवार जब मैं गाँव पहुँची तो देखा कि दुआरे पर कम से कम बीस गाएं बैठी थीं.

हमेशा की तरह उस शनिवार जब मैं गाँव पहुँची तो देखा कि दुआरे पर कम से कम बीस गाएं बैठी थीं.
यह सब यहाँ क्यों बैठी हैं? मम्मी से पूछा
क्योंकि इनको यहाँ कोई मारता नही है.सुरक्षित महसूस करती हैं. मम्मी ने बताया
मतलब...?
एक दिन गाँव के लड़कों ने इनको घेरकर तालाब में करके बहुत ज्यादा मारा है.जो तालाब से निकलने की कोशिश करती उसे पीट डालते.अधमरा करके छोड़ा है,तब से बिचारी यहीं रहती हैं लेकिन इतना डरी हैं कि अभी तुम नन्ही सी छंटी उठा लो तो भागने लगेंगी.
                               ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन लोगों ने मारा उन सबके गले मे भगवा गमछा रहता है और बाइक पर हिन्दुत्व के गौरव से सम्बंधित कोई स्लोगन या नारा.
ये सभी गौ सेवक या गौ रक्षा टाइप के किसी न किसी दल का हिस्सा हैं गलती हालांकि उनकी भी नही है क्योंकि पाँच दस बीघे की फसल में यह झुण्ड अगर पाँच मिनट को भी घुस जाए तो पूरा छमाही किसान के पास ज़हर खाने को भी पैसे नही बचते. गाय माता तभी तक है जब तक अपनी जीविका पर संकट न हो.
बाद में उन तमाम गायों में से कुछ गाभिन थीं जिन्हें लोगों ने दूध के लिए बांध लिया,कुछ बछड़ों को जोड़ लगाकर खेत जोतने को नाथ कर ले गए.
तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि फसल बचाने के लिए ज्यादातर लोगों ने धारदार कंटीले तारों की बाड़ खेत के चारों ओर लगा दी है.पेट की भूख से लाचार ये गायें जब उनको बेधकर अन्दर जाने की कोशिश करती हैं तो जगह जगह कटकर घाव हो जाता है.अगर किसी तरह अन्दर चली जाएं और किसान को खबर हो जाए तो बाहर आने के प्रयास में ये जितनी चोट खाती हैं उस जीवन की यंत्रणा को देखते हुए बूचड़खाने जन्नत सरीखे हैं.
                           एक बात और बतानी थी कि जिस दरवाज़े पर इन्होंने खुद को सुरक्षित समझा वहाँ ज्यादातर मुस्लिम होते हैं क्योंकि हमारे खेत और जानवरों की देखभाल करने वाले सभी मुस्लिम ही हैं.


(यह तस्वीर मैंने रवीश जी की वाल से ली है पर यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के किसी भी गाँव की हो सकती है.)

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