बंधुओं नमस्कार
दोस्तों आज बैठे बैठे इस घटनाक्रम को देखकर भारतीय संस्कृति कि एक छाप देखने को मिली,जिस तरीके से बुजुर्ग झींका, ढोलक के साथ बिरहा राग गा रहे थे और उसमें एक बुजुर्ग का नृत्य देख कर मन आनंदित हो गया, यह मेरा प्रथम अनुभव था,
आपको बता दें की यह टोली श्री कृष्ण जन्माष्टमी के बाद भगवान श्री कृष्ण के छठवें दिन के उपलक्ष में होने वाले महोत्सव की है, कोरोना महामारी के कारण शायद इस टोली में चार ही लोग थे अगर यह महामारी ना होती तो टोली के और भी सदस्य मन को आनंदित करते,
उनकी टोली के जाने के बाद मस्तिष्क में कई विचार आए जहां एक विचार आपके सामने रख रहा हूं, कि विकास की अंधाधुंध रफ्तार ने जहां एक ओर उन्नति,प्रगति और तकनीकी के द्वार खोले हैं,वही भारतीय संस्कृति की विलुप्तता भी इसका एक नकारात्मक पहलू है,दोस्तो इसका जीता उदाहरण मेरे मस्तिष्क के प्रथम 5 सेकंड अवाक होना है,,
दोस्तों जिस संस्कृति से हमारी पहचान है,हमारे राष्ट्र की पहचान है, और हम सभी उसी संस्कृति के दम पर एक समय विश्वगुरु थे,
मेरे निजी विचार से भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने की बहुत आवश्यकता है उस टोली को देखकर शायद 5 सेकंड के लिए मस्तिष्क का ना समझ पाना भारतीय संस्कृति की विलुप्तता का ही प्रभाव था इसलिए हम सभी को सभी समाज,सभी धर्मों, की पुरातन संस्कृति को संरक्षित करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए,,खैर हृदय में जो विचार आए वह लिख दिए साथ ही उस घटनाक्रम का प्रतिरूप आपके सामने रख रहा हूं देखिए और आनंदित होइए,,,,
फखरपुर की आवाज
आज खाली समय को व्यतीत करने के परिपेक्ष में एक व्यवसायिक प्रतिष्ठान पर मोबाइल में नजरें गड़ाए हुए बैठा समय व्यतीत कर रहा था तभी, अचानक से चार लोग जो हाथ में झींका (वाद्ययंत्र) ढोलक और दो व्यक्ति ऐसे थे जो भारतीय संस्कृति के बिरहा राग के गीत गा रहे थे,और दूसरे उस पर नृत्य कर रहे, अचानक उनके आने से प्रथम 5 सेकेंड मैं अवाक सा हो गया,विश्वास मानिए इस कोरोनावायरस महामारी में इन सभी को देखकर मैं अपने मैं अचंभित हो गया लेकिन पीछे एक बुजुर्ग संत के सर पर एक मटकी देखी,और तब तक मस्तिष्क इस घटनाक्रम को पढ़ चुका था,,
दोस्तों आज बैठे बैठे इस घटनाक्रम को देखकर भारतीय संस्कृति कि एक छाप देखने को मिली,जिस तरीके से बुजुर्ग झींका, ढोलक के साथ बिरहा राग गा रहे थे और उसमें एक बुजुर्ग का नृत्य देख कर मन आनंदित हो गया, यह मेरा प्रथम अनुभव था,
आपको बता दें की यह टोली श्री कृष्ण जन्माष्टमी के बाद भगवान श्री कृष्ण के छठवें दिन के उपलक्ष में होने वाले महोत्सव की है, कोरोना महामारी के कारण शायद इस टोली में चार ही लोग थे अगर यह महामारी ना होती तो टोली के और भी सदस्य मन को आनंदित करते,
उनकी टोली के जाने के बाद मस्तिष्क में कई विचार आए जहां एक विचार आपके सामने रख रहा हूं, कि विकास की अंधाधुंध रफ्तार ने जहां एक ओर उन्नति,प्रगति और तकनीकी के द्वार खोले हैं,वही भारतीय संस्कृति की विलुप्तता भी इसका एक नकारात्मक पहलू है,दोस्तो इसका जीता उदाहरण मेरे मस्तिष्क के प्रथम 5 सेकंड अवाक होना है,,
दोस्तों जिस संस्कृति से हमारी पहचान है,हमारे राष्ट्र की पहचान है, और हम सभी उसी संस्कृति के दम पर एक समय विश्वगुरु थे,
मेरे निजी विचार से भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने की बहुत आवश्यकता है उस टोली को देखकर शायद 5 सेकंड के लिए मस्तिष्क का ना समझ पाना भारतीय संस्कृति की विलुप्तता का ही प्रभाव था इसलिए हम सभी को सभी समाज,सभी धर्मों, की पुरातन संस्कृति को संरक्षित करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए,,खैर हृदय में जो विचार आए वह लिख दिए साथ ही उस घटनाक्रम का प्रतिरूप आपके सामने रख रहा हूं देखिए और आनंदित होइए,,,,
फखरपुर की आवाज
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