एक ताल्लुकदार के घर में जन्मे *महबूब मीना शाह* ( बाबा जी ) जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में भी हिस्सा लिया था।
जिनकी बेसिक शिक्षा लखनऊ के हुसैनाबाद इंटर कॉलेज से हुई। बाबा जी ने इंटरमीडिएट कराची के एच.एम. आई. एस. बहादुर कॉलेज से किया। आगे की शिक्षा मुस्लिम यूनिवर्सिटी से प्राप्त की। महज 10 साल की उम्र में बाबा जी का चयन *जल सेना* में हो गया। जिसमें बाबाजी का नाम अजीज हसन था। सन 1944 से 1946 तक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लेने के लिए भारत की ओर से सिंगापुर भेजा गया। अंग्रेजो के खिलाफ मुंबई में *भारत छोड़ो आंदोलन* में सहभागिता की। *स्वतंत्रता आंदोलन* को आगे बढ़ाने के लिए अंग्रेज अधिकारियों के आदेशों की अवहेलना की। जिससे अंग्रेजी सेना ने करीब 11 साथियों के साथ गिरफ्तार किया और कराची की जेल में भेज दिया और उसके बाद कोर्ट मार्शल भी किया गया। मई 1947 को जब पाकिस्तान का नामकरण हुआ उसके बाद पारिवारिक निर्णय के अनुसार न्योतनी जिला उन्नाव में तालुकदारी का दायित्व संभाला और उसके पश्चात मुंबई गए। 14 से 15 वर्षों तक मुंबई की चमक चकाचौंध में रहने के बाद इस भौतिकवाद से उबर कर अध्यात्म की ओर रुझान बढ़ा। एक सच्चे गुरु की तलाश में भटकते हुए अध्यात्म के क्षेत्र में ख्याति लब्ध गुरु *हजरत इकराम मीना शाह* से संपर्क हुआ उनकी नजरों ने कुछ ऐसा असर किया कि पूरा जीवन सिर्फ उन्हीं का होकर रह गया। उनकी शिक्षाओं तथा मानव सेवा की प्रेरणा ने कुछ ऐसा प्रभाव किया कि अपना सब कुछ सारे सुख त्याग कर वर्ष 1967 से आज तक गुलजार है। मानव रहित बियाबान में गुरु के आदेश पर कुटिया बनाकर बस गया। तब से आज तक यह सिलसिला जारी है ।
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