आपदा में महँगाई, कालाबाजारी, जमाखोरी और लूट योगी मोदी सरकार में चरम पर हैं : ठा संजीव सिंह
आपदा में हजारों घर अपने चिराग को खो रहे थे तब मोदी योगी समुचित व्यवस्था भी नही कर पाए : ठा संजीव सिंह
आगरा,संजय साग़र। कोरोना संकट काल की दूसरी लहर के कहर में ये बात काफ़ी हद तक चरितार्थ हो हो गई कि वो चैन से सोते रहे हैं शहर बेचकर,कोई सुहाग बचा रह था ज़ेवर बेचकर। बाप ने उम्र गुज़ार दी घरौंदा बनाने में, मजबूर बेटा उनकी सांसे ख़रीद रहा था घर बेचकर। बर्बाद हो गए कई घर दवा ख़रीदने में, खोसों की तो तिजोरियाँ भर गई ज़हर बेचकर। सांपों को सपेरे ने छोड़ दिया यह कहकर, अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा। आत्महत्या कर ली गिरगिट ने यह सोचकर,अब जिम्मेदार नेताओं से ज्यादा रंग नहीं बदल पाएगा। गिद्ध भी कहीं छुप गए यह देखकर, जनता के प्रिय जनप्रतिनिधियों से अच्छा नोंच नहीं पाएगा क्योंकि आपदा में महँगाई, कालाबाजारी, जमाखोरी और लूट योगी मोदी सरकार में चरम पर हैं। ये कहना ठा संजीव सिंह का हैं।
राष्ट्रीय नेता, इंडियन नेशनल कांग्रेस एआईसीसी पर्यवेक्षक प्रभारी, बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, सदस्य इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स सचिव, कांग्रेस किसान एवं औद्योगिक प्रकोष्ठ, कानूनी सलाहकार सदस्य, चुनाव प्रचार समिति बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल और आसाम एवं लोकसभा चुनाव 2024 में प्रधानमंत्री पद के दावेदार ठाकुर संजीव कुमार सिंह बहुत भारी मन से बताना पड़ रहा है, हम अपनों को खोते जा रहे हैं, ॐ शांति और विनम्र श्रद्धांजलि देते जा रहे हैं। कितनी हिम्मत जुटायें और कैसे जुटायें, बड़ी बेबसी का दौर है। प्रभु अपने प्रकोप को अब तो शांत कर दो। ये आंसुओं का ही दौर चल रहा है। कितने माँओं ने इस महामारी में अपने बेटे के लिए आंसू बहाए होंगे, कितने मासूम बेटों और बेटियों ने माँ बाप के चले जाने पर, कई मौतें टल सकती थी अगर सुविधा उपलब्ध होती तो। हर दिन आपलोगों में से कई ने सोशल मीडिया पर बेड और एम्बुलेंस तक की किल्लत देखी होगी। एक आंसू ही था जो एक को दूसरे से जोड़ कर रखा था। इस लिए आंसू बहुत बड़ी चीज होती है। अगर इस महामारी से लड़ने में सभी चीजों की व्यवस्था अच्छी तरह से की जाती तो हमें रोना नहीं पड़ता, ना आंसू बहते ना अपने यू तड़प-तड़ के बैमौत मारे जाते, लेकिन शर्म की बात है कि इस महामारी में वो यानी दिखावटी लोग दुःख की घड़ी में किधर भी नजर नही आए। कोविड संकट में लोग एक दूसरे के आंसुओं से मदद पा रहे थे। कई लोगों के लिए आक्सीजन, दवा, बेड, बेंटिलेटर और इलाज़ के लिए पैसे व घर में बच्चों के लिए खाने पीने की जुगाड़ कर रहे थे। तब वो लोगों के मसीहा बन हमें संकट में अकेला छोड़कर अपने महलों में बंद हो गए कहीं भी आपदा में नजर नही आए। जब कि हजारों घर अपने चिराग को खो रहे थे तब मोदी योगी समुचित व्यवस्था भी नही कर पाए। अब जब लोगों ने अपनों को खो दिया हैं तब टीवी पर आकर हजारों सवालों के जवाब देने के बजाय सिर्फ़ आँसू बहाकर निकल जायेगे। लेकिन हमें अपनों का व्यबस्थाओं के अभाव में यू छोड़ कर चला जाना उम्र भर खलता रहेगा। ज़िम्मेदार लोगों के लिए बस एक आँसू बहा देना न्याय संगत कतई नही होगा। अक्सर घरों में देखने को मिलता है कि जब गार्जियन रोने लगते है तो महसूस होता है, अब सच में कुछ नही होगा। कोविड संकट में यहीं हाल हमारे साथ भी हो रहा है। पीड़ित लोगों को अब उनसे कोई उम्मीद भी नही है। सिवाय आसुओं और दर्द के। ये आंसू यही कहते है कि हम कमजोर हैं। जिम्मेदारी अलग चीज है, जिम्मेदारी निभाने वाले व्यक्ति को मैंने ज्यादा रोते हुए नही देखा है। क्योंकि हम भावनाओं में बहने वाले सीधे साधे लोग है। लेकिन अभी समय कुछ और चल रहा हैं। इस समय उस व्यवस्था का रोना जिस पर हमारी पूरी जिम्मेदारी है हम को बहुत कमजोर साबित करती है। समय के चक्र ने दिखा दिया कि सिर्फ़ दिखावटी बड़ी-बड़ी बातों से महामारी पर काबू नहीं किया जा सकता। उसके लिए ज़मीनी इंतज़ामात करने होते हैं जो उनके बस की बात नहीं। ये साबित हो चुका हैं और हमलोगों को उनसे कोई उम्मीद भी नहीं हैं। ना करनी चाहिए। अब ज़्यादा नाक़ामियाँ पर बात करना भी फ़िज़ूल ही होगा। उनको उनके महलों में रहने दीजिए जाने वाले चले अब लक़ीर पीटने से वो वापस नहीं आएंगे।लेकिन उन मौतों का इल्ज़ाम तो इनके ही सर आएगा। क्योंकि समय से बड़ा बलबान कोई भी नहीं। आख़िर यह कैसा विधि का विधान है कि महज अल्प समय में ही देखते-देखते दो पीढ़ियां काल के हाथों ने हम से छीन कर गोलोकवासी बना दी। कई अपने चले गए। हे ईश्वर कब और कैसे रूकेगा ये अंतहीन सा लगने वाला सिलसिला। बेहद दुखद दौर हैं। प्रभू सब कुछ पहले की तरह जल्दी से जल्द ठीक करें। बहुत याद आएंगे हर दुःख सुख में साथ देने बाले वो अपने लोग। सभी को शोक संवेदना अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।
श्री सिंह ने बताया कि कफनखसोंटो का इतिहास बहुत पुराना है। ये युगों युगों से हैं और युगों तक रहेंगे, ये हर विपदा में रहते हैं। महामारी में यह साक्षात दिख रहे हैं। ख़ोस यानी खफ़नखसोटों के लालच के कारण ग़रीब जनता कोरोना महामारी में ईलाज, टेस्ट,ऑक्सीजन, दवा, इंजेक्सन, वेंटीलेटर, पलंग, अस्पताल, एम्बुलेंस के अभाव में तड़प- तड़प कर बैमौत दम तौड़ रही थी । इनके द्वारा अनावश्यक मूल्य वृद्धि, कालाबाजारी, जमाखोरी व मरीजों से लूट ने मध्यम व निम्न वर्गीय आदमी का जीवन बहुत ही मुश्किल कर दिया है। आपदा में मनमाने तरीके से पैसे कमाने का अवसर तलाशने के कारण कालाबाजारी, जमाखोरी और लूट योगी मोदी सरकार में चरम पर हैं। खोसों के लिए आपदा भी अवसर बन जाती है। ख़ोस या कफनखसोट कहा जाता था। इनकी पहचान? जब आपदा आएगी तो घरों में सामान खोजते मिलेंगे। लाशों के ज़ेवर नोचते मिलेंगे। बीमारी फैलेगी तो दवा, इंजेक्सन, ऑक्सीजन आदि ब्लैक करते मिलेंगे, आपदा में एंबुलेंस के दाम अपनी मनमानी से बढ़ा देंगे। संकट के समय में गरीब की मजबूरी का पूरा-पूरा फायदा उठाएंगे। लूटेंगे, खसोटेंगे, मुनाफाख़ोरी कालाबजारी करेंगे, ठगी करेंगे और जहां मौत का तांडव चल रहा होगा, वहां जश्न मनाएंगे। झूठी समाज सेवा का घंटा बजाते रहेगें मग़र संकट में ज़रूरतमंदों की मदद कभी नहीं करेंगे। आपदा में अवसर तलास कर मनमानी लूट ख़सूट करने वाले यही तो हैं।अब देखो ना देश कोरोना से जंग ही तो लड़ रहा है जो इन लुटेरों के लिए अवसर ही तो है,जो मजबूर और बेबश जनता को लूट रहे हैं। स्थिति तब और ही भयानक हो जाती है,जब कोई निजी हित साधने हेतु आपदा को अवसर मान संवैधानिक प्रक्रिया को दरकिनार कर खुली लूट करें। अपना सब कुछ बेच भी कोरोना युद्ध में मरे गए उनके असहाय परिजन आज भी अपनों की याद में रोने को पल पल मजबूर हैं। हिलहाल उनकी आँखों से आशु सूख गए हैं पर दिलों में उनकी यादें बाकी तो हैं। कफ़नचोरों ने श्मसान से उठा कर कफ़न तक बेच दिए। खैर,इतने मायूस ना हो दोस्तों दुनिया आज भी ईमानदार और मेहनती लोगो के कंधो पर ही खडी है। ऐसे लोगों का प्रतिशत बहुत कम है लेकिन आज भी अच्छे लोगो की संख्या भी बहुत अधिक हैं। अच्छे लोग आज भी संकट की घड़ी में जरूरतमंदों की हर सम्भव मददकर रहें थे और भविष्य में भी करते रहेगें। दुनिया आज भी ईमानदार और मेहनती लोगो के कंधो पर ही खडी है।
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