संसार में केवल नारायण ही दिला सकते सुख आचार्य धरणीधर जी महाराज
विकास खण्ड गिलौला के अंतर्गत मनिकौरा में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस में अयोध्या जी के सुप्रसिद्ध प्रवक्ता आचार्य धरणीधर जी महाराज ने कहा भगवान जो भी लीला करते हैं वह अपने भक्तों के कल्याण या उनकी इच्छापूर्ति के लिए करते हैं। श्रीकृष्ण ने विचार किया कि मुझमें शुद्ध सत्वगुण ही रहता है, पर आगे अनेक राक्षसों का संहार करना है। इसलिए ब्रज की रज के रूप में रजोगुण संग्रह कर रहे हैं। पृथ्वी का एक नाम 'रसा' है। श्रीकृष्ण ने सोचा कि सब रस तो ले चुका हूं अब रसा (पृथ्वी) रस का आस्वादन करूं। पृथ्वी का नाम 'क्षमा' भी है। माटी खाने का अर्थ क्षमा को अपनाना है। भगवान ने सोचा कि मुझे ग्वाल-बालों के साथ खेलना है, किंतु वे बड़े ढीठ हैं। खेल-खेल में वे मेरे सम्मान का ध्यान भी भूल जाते हैं। कभी तो घोड़ा बनाकर मेरे ऊपर चढ़ भी जाते हैं। इसलिए क्षमा धारण करके खेलना चाहिए। अत: श्रीकृष्ण ने क्षमारूप पृथ्वी अंश धारण किया।
भगवान ब्रजरज का सेवन करके यह दिखला रहे हैं कि जिन भक्तों ने मुझे अपनी सारी भावनाएं व कर्म समर्पित कर रखे हैं वे मेरे कितने प्रिय हैं। भगवान स्वयं अपने भक्तों की चरणरज मुख के द्वारा हृदय में धारण करते हैं। पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को पुकारा तब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर आये हैं। इसलिए वह मिट्टी में नहाते, खेलते और खाते हैं ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सकें। गोपबालकों ने जाकर यशोदामाता से शिकायत कर दी 'मा ! कन्हैया ने माटी खायी है।' 'बालक माटी खायेगा तो रोगी हो जायेगा' ऐसा सोचकर यशोदामाता हाथ में छड़ी लेकर दौड़ी आयीं। उन्होंने कान्हा का हाथ पकड़कर डांटा। मां के डांटने पर जब श्रीकृष्ण ने अपना मुंह खोला तो उसमें पूरी सृष्टि ही नजर आने लगी। इस अवसर पर मुख्य यजमान आशा तिवारी अनोखे लाल तिवारी हरिओम तिवारी जिलाध्यक्ष भाजपा युवा मोर्चा,अजय प्रधान,विक्रम बाबू तिवारी, उमाशंकर तिवारी,अजय शुक्ल,विजय कुमार त्रिपाठी,राम फेरन तिवारी, राम शंकर वर्मा बेचई लाल यादव,लाल जी,